हैलो फ्रेंड्स! आज मैं आपको ईमानदार लकड़हारे की कहानी बताऊंगा।आशा करता हूं कि आप इस कहानी से बोर नहीं होंगे और आप इस कहानी का अच्छे से आनन्...
हैलो फ्रेंड्स! आज मैं आपको ईमानदार लकड़हारे की कहानी बताऊंगा।आशा करता हूं कि आप इस कहानी से बोर नहीं होंगे और आप इस कहानी का अच्छे से आनन्द लेंगे।तो चलिए फ्रेंड्स अब इस कहानी को शुरू करते हैं।
ईमानदार लकड़हारा
बहुत समय पहले की बात है एक काश्तपुर नाम का एक गांव था। उस गांव में लोग ज्यादातर लकड़ी का व्यवसाय करते थे अर्थात उस गांव में अधिकांश लकड़हारे रहते थे। उस गांव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। उस लकड़हारे का नाम श्याम था।वो अपने कार्य का दृढ़ प्रतिज्ञ था।वो प्रतिदिन अपने गांव से काम की तलाश में गांव से बाहर जाता था और अपने परिवार का खर्चा चलाता था।वह लकड़हारा बहुत ईमानदार था।वो प्रतिदिन कम जाता था एक भी दिन अपने काम से पीछे नहीं रहता था।वह प्रतिदिन अपने काम पर सुबह 7 बजे जाता और दिन भर मेहनत करके शाम को 7 बजे अपने काम से लौटता था।इस ही वो प्रतिदिन मेहनत करता था और अपने परिवार का पालन - पोषण करता था।साथ में इतनी मेहनत करने के बाद भी वह अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करता था।धीरे - धीरे ऐसे ही दिन गुजरने लगे और वो अपने काम को नियमित रूप से करता रहा।
बेटे को काम सिखाना
इस काम को करते - करते उसे बहुत वर्ष हो चुके थे।धीरे - धीरे वो वृद्ध होने लगा।उसने अपने पुत्र से कहा कि - बेटा! मैं धीरे - धीरे वृद्ध होता जा रहा हूं,अगर तुम इस काम को सीख लो तो मेरे इस वृद्ध शरीर से थोड़ा कार्यभार कम हो जायेगा।बेटे ने भी हां कर दिया और अपने पिताजी के साथ वो भी काम पर जाने लगा और मन लगाकर काम सीखने लगा।धीरे धीरे कुछ समय बाद वो काम में पारंगत हो गया और अपने पिताजी के साथ काम करने लगा।दिन अब ऐसे ही बीतने लगे और काम करते करते बहुत समय हो गया था।कुछ दिन अचानक से लकड़हारे श्याम की तबीयत खराब हो गई थी और उसे घर पर ही रुकना पड़ा।उसने अपने बेटे को ही काम पर भेज दिया।इस दिन लकड़हारे के बेटे ने बहुत बड़े और बजनदार पेड़ को काटा था।जिसकी कीमत 100 स्वर्णमुद्राएं थी।अगले दिन लकड़हारा व उसका पुत्र दोनों काम पर गए।ईमानदारी का परिचय
उसी दिन दोपहर के भोजन के समय पास के नगर का एक घमंडी सेठ उनके पास उस पेड़ को खरीदने आया था। वो आते ही बड़ी बड़ी बातें करने लगा और उस पेड़ की कीमत लकड़हारे को 200 स्वर्णमुद्राएं देने लगा, और वो इसके बदले पेड़ और उसकी कला को खरीदना चाहता था।परंतु लकड़हारा को उस पेड़ की कीमत सिर्फ 100 स्वर्णमुद्राएं ही चाहिए थीं।इसलिए उस लकड़हारे ने सेठ से पेड़ को देने से मना कर दिया।वो घमंडी कीमतों को बढ़ाने लगा और उनसे दुर्व्यवहार करने लगा।पर लकड़हारे ने स्पष्ट मना कर दिया।अंततः सेठ को वहां से जाना पड़ा।परंतु यह बात लकड़हारे के लड़के को समझ नही आई।पर उसने कुछ नही पूछा।कुछ दिन बाद उस पेड़ को खरीदने के लिए राजा के कुछ मंत्री आए।उन्होंने आदर पूर्वक लकड़हारे से उस पेड़ की कीमत पूछी और उस लकड़हारे को 100 स्वर्णमुद्राएं देकर उस पेड़ को लेकर चले गए।वो राजमंत्री उस लकड़हारे को अधिक स्वर्णमुद्राएं देने लगे तो लकड़हारे ने लेने से इंकार कर दिया और इस पेड़ की वास्तविक कीमत जितनी है मुझे उतनी ही चाहिए, मैं इससे अधिक की इच्छा नहीं करता हूं।राज मंत्री उस लकड़हारे से प्रसन्न हुए और पेड़ को लेकर चले गए।ईमानदारी का फल
उन्होंने इस बात की चर्चा राजा से की,तो राजा ने स्वयं आने का निर्णय किया।राजा कुछ समय पश्चात वहां भेष बदलकर स्वयं आया तो उसने भी ऐसा ही पाया।राजा बहुत प्रसन्न हुआ।राजा अपने वास्तविक स्वरूप में आ गया।लकड़हारे ने राजा का आदर किया।राजा लकड़हारे की इस सभी बातों से और ईमानदारी के गुण से बहुत प्रभावित हुआ।राजा ने उस लकड़हारे को सम्मानित किया और उसे राज लकड़हारा घोषित कर दिया।नैतिक शिक्षा - अगर लकड़हारा अधिक धन के लालच में घमंडी सेठ को पेड़ दे देता तो न तो उसकी राजा से भेंट होती और न ही उसे राज लकड़हारा घोषित किया जाता।
"ईमानदारी सर्वोत्तम नीति होती है,हमेशा ईमानदार बने रहना चाहिए,लालची नहीं बनना चाहिए।"तो फ्रेंड्स आपको हमारी "ईमानदार लकड़हारे की कहानी" कैसी लगी हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं और आप किस टॉपिक पर कहानी पढ़ना पसंद करते हैं ये भी बताएं।
No comments